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Monday, April 19

Angina pectoris दिल का दर्द

 रोग परिचय- इसमें छाती के बीचों-बीच या छाती के बायीं तरफ बहुत तेज दर्द उठता है जो उल्टे हाथ, गर्दन व पीछे कमर तक चला जाता है। आराम करने पर या ग्लिसराइल ट्राइनाइट्रेट (Glyceryl Trinitrate ) लेने पर ठीक हो जाता है।

Angina pectoris  दिल का दर्द
Angina pectoris  दिल का दर्द


रोग के कारण

हृदय शूल अधिकतर कोरोनरी धमनी में मेदार्बुद (Atheroma) के होने से होता है। कभी-कभी निम्नलिखित स्थितियों में भी ऐन्जाइना पैक्टोरिस हो सकता है


1. महाधमनी बाल संकीर्णता या महाधमनी कपाट असमर्थता ।


2. फुफ्फुसीय धमनियों की सिफिलिसी संकीर्णता ।


3. कोरोनरी धमनियों का जन्मजात दोष । 

4.गंम्भीर अल्परक्तता।


रोग के लक्षण


1. हृदय शूल का दर्द या भारीपन स्टरनम के पीछे या पुरोहद के ऊपर स्थानीय हो सकता है, लेकिन ज्यादातर बायें कन्धे एवं बायें हाथ के भीतरी भाग में प्रसारित होता है। कभी-कभी यह दर्द गर्दन की ओर, जबड़े तथा पीठ पर, दायीं बाँह या अधिजठर में प्रसारित होता है।


2. दर्द काटता या चीरता या खरोंचता हुआ होता है। पर छाती में भारीपन या दबाव के रूप में भी अनुभव हो सकता है। 

3. दर्द एकाएक परिश्रम के साथ-साथ (जैसे-सीढ़ियों पर चढ़ते समय) आरम्भ होता है और विश्राम करने पर खत्म हो जाता है। दर्द चन्द मिनटों तक ही सीमित रहता है।


• ऐसा दर्द 'नाइट्राइट' ग्रुप की कोई दवा लेने पर कम हो जाता है। धड़कन होना, दम घुटना या श्वास-कष्ट होना संभव है। यहाँ तक कि मूर्छित होना भी संभव है। दौरा पड़ने के समय रोगी पीला पड़ जाता है और चिंतित दिखायी देता है। साथ में रक्तदाब बढ़ा हुआ हो सकता है। दर्द के समय सम्भावित मौत का भय बना रहता हैं


रोग की पहचान एवं निदान


उपरोक्त लक्षणों के आधार पर निदान (रोग) की पहचान) हो सकता है। इसके अतिरिक्त ECG रोग कां निंदान संभव है। यदि यह दौरा पड़ने के दौरान किया जाये या परिश्रम कराने के बाद किया जाये। कतिपय रोगियों में कोरोनरी एन्जियोग्राफी की आवश्यकता पड़ सकती है।


रेडियो आइसोटोप परीक्षण द्वारा प्रभावित क्षेत्र में विश्राम की स्थिति में या परिश्रम के


उपरान्त कम घने क्षेत्र (Cold Spotes) | हृदय-पेशी के क्षेत्र देखे जा सकते हैं।

रोग का परिणाम

इसमें दर्द के दौरे के समय या बाद में रोगी की मृत्यु हृदय गति रुक जाने से हो सकती


पहले ही हमले में रोगी की मृत्यु हो सकती है। दौरे के बाद जीवित रहने पर रोगी जोर-जोर से साँस लेता है। प्रायः मूत्र पीला और खाली डकारें आती हैं। रोगी कष्ट से छटपटाता है।


हृदय शूल की चिकित्सा विधि, पथ्य, अपथ्य एवं सहायक उपचार


चिकित्सा विधि

ऐन्जाइना पेक्टोरिस का औषधियों द्वारा उन्मूलन किया जाना संभव नहीं होता है। चिकित्सा का उद्देश्य दौरे के दौरान दर्द को कम करना तथा दौरा न होने देना होता है। अधिकतर ऐसे रोगी बहुत अधिक घबराये हुए होते हैं जिन्हें विश्वास दिलाने की आवश्यकता होती है। ऐसे लोगों को अपने रहन-सहन में थोड़ा परिवर्तन लाने की आवश्यकता होती है। उन्हें किसी परिस्थिति को गम्भीरता से नहीं लेना चाहिये। काम के बीच उचित विश्राम विशेषकर भोजनोपरान्त विश्राम आवश्यक है। कठिन परिश्रम जैसे-दौड़ना, साइकिल चलाना, सीढ़ियाँ चढ़ना आदि इनसे बचना चाहिये। मोटापा को कम करना आवश्यक है । खाना हल्का होना चाहिये। कोलेस्ट्रॉल का स्तर नियंत्रित होना चाहिये ।


पथ्य, अपथ्य, तथा सहायक चिकित्सा

पथ्य-रोगी के लिये शीघ्र पचने वाला तथा पौष्टिक आहार की व्यवस्था करनी चाहिये। बकरी के माँस का शोरबा, चपाती, साबूदाना, अण्डा, मुर्गी का बच्चा (Chicks), तीतर तथा बटेर का माँस आदि दें।


अपथ्य- तम्बाकू, शराब, चाय, खट्टी चीजें, कॉफी, आध्यमान कारक आहार, गरिष्ठ और देर से पचने वाला आहार जैसे-अरबी, आलू मछली, बैंगन, करेला गुड़, तेल आदि न दें। सहायक चिकित्सा-दौरे के समय रोगी की गर्दन और छाती की सख्त चीज हटा दें। कपडे ढीले कर दें। शुद्ध वायु दिलायें। रोगी को सर्दी से बचायें। सर्दी के दिनों में छाती पर गर्म कपड़ा रखवायें।

विशेष मलाई रहित दूध (Milk without Cream) और केले की खुराक उत्तम रहती है। हो सके तो रात का खाना न लीजिये। अनाज रहित आहार उत्तम रहता है। नमक रहित लेना चाहिये। पेट भरने के लिये सादे सूप या दही के पानी का प्रयोग कीजिये। सप्ताह में एक दो दिन उपवास रखना अच्छा रहता है।

किसी भी बीमारी को समझने के लिए या किसी भी दवा को यूज करने से पहले अपने डॉक्टर की सलाह आवश्यक ले अगर ऐसा नहीं करती हैं तो इसके जिम्मेदार खुद आप हैं 

Thursday, April 15

Heart disease दिल की बीमारी आपके करियर के विकास के लिए क्यों है ठोस सबूत

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दिल की बीमारी आपके करियर के विकास के लिए क्यों है ठोस सबूत

 इनमें से कोई भी समस्या हृदय रोग का सिग्नल हो सकती है 

Heart disease
Heart disease


1. बेहोशी व चक्कर

आमतौर पर कभी-कभार चक्कर आने व बेहोश होने का हृदय रोगों

से कोई रिश्ता नहीं होता। पर अगर एक लम्बे अर्से से नियमित रूप से बेहोशी व चक्कर आने की शिकायत रहती है, तो यह हृदय सम्बन्धी किसी बीमारी का लक्षण हो सकता है।

 2. छाती में दर्द (Chest Pain) 

यदि आपको अक्सर छाती में दर्द की शिकायत रहती हैं, तो इसका मतलब यह नहीं है कि आप हृदय सम्बन्धी किसी बीमारी से पीड़ित हैं। दरअसल

गैस की शिकायत होने, छाती की माँसपेशियों के खिंच जाने आदि कारणों से भी छाती में दर्द की शिकायत हो सकती है। छाती में बहुत से रोगों से दर्द हो सकता है। जैसे- मायोकार्डियल Pectoris) इन्फ्राक्शन में बहुत तेज दर्द होता है जिसे हृदयशूल (एन्जाइना पेक्टोरिस-Angina कहते हैं।

* हृदयावरण शोथ में बायें निप्पल के नीचे दर्द होता है । फुफ्फुसीय संक्रमण में प्लूरा में दर्द होता है।

* छाती के बिलकुल बीच वाले हिस्से में ऐंठन या मरोड़ के साथ दर्द होना हृदय (Coronary) के किसी बीमारी का लक्षण हो सकता है। धमनी

अतएव सुरक्षा की दृष्टि से यही उचित होगा कि छाती में किसी भी तरह के दर्द के लगातार होने पर आप फौरन अपने डॉक्टर से सलाह लें

3.साँस की तकलीफ

 अगर कोई हल्का-फुल्का काम करने या आराम के दौरान भी आप को सांस लेने में हमेशा कठिनाई होती है तो हो सकता है कि आप किसी हृदय संबंधित बीमारी से पीड़ित हो सांस लेने में दिक्कत खींचकर सांस लेना हृदय रोग का प्रमुख लक्षण है आमतौर पर सांस लेने की प्रक्रिया आपने आप बिना किसी अनुभव के होती है पर इसमें रोगी को सांस लेने में बेचैनी अथवा सांस खींच खींच कर आती है रोगी को सांस लेने में जोर लगाना पड़ता है अथवा मेहनत करनी पड़ती है


 हृदय रोग में रोगी जल्दी व कम गहरे साँस लेता है पर श्वसन तंत्र के रोग में सीटी की सी आवाज आती है व साँस लेने की माँसपेशियों का ज्यादा इस्तेमाल होता है।


4. हाई ब्लड प्रेशर (Hypertension) 

 यदि आपका ब्लड प्रेशर हाई है, बावजूद इसके आप उसका इलाज नहीं करा रहे हैं, तो यकीनन इसका दुष्प्रभाव हृदय पर पड़ सकता है। चूँकि ब्लड प्रेशर सामान्य से ज्यादा है या नहीं इसका बगैर डॉक्टर चेक-अप के कुछ खास अंदाजा नहीं लग पाता लिहाजा बेहतर यही है कि आप कम से कम साल में एक बार अपने ब्लड प्रेशर की जांच आवश्यक करा लें यदि ब्लड प्रेशर सामान्य से अधिक है तो उसका उचित इलाज कराएं


5. टखनों में सूजन-

 टखनों में सूजन या टखनों के ऊतकों में पानी भरने (Retation of water) की शिकायत होने पर भी दिल का दौरा पड़ने का खतरा रहता है।

6. कोलेस्ट्रॉल का बढ़ना

आपके खून में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ने का मतलब ही है कि कभी भी आप हृदय रोग की चपेट में आ सकते हैं। इसलिये खून में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा पर कन्ट्रोल करके आप हृदय रोगों की सम्भावनाओं को काफी हद तक कम कर सकते हैं। यदि आपके खून में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा 180mg% से कम है तो आपके हृदय रोगों के शिकार होने की सम्भावना बहुत कम हो जाती है। यदि खून में कोलेस्ट्रॉल 290mg% से ज्यादा हो तो आपके हृदय रोगों के शिकार होने की सम्भावना उन व्यक्तियों से 9 गुना ज्यादा है जिनके खून में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा 200mg% है। इसलिये आपके लिये अपने खून में उपस्थित कोलेस्ट्रॉल की मात्रा की नियमित जाँच कराना और अगर कोलेस्ट्रॉल की मात्रा सामान्य से ज्यादा हो तो


उसका इलाज कराना आवश्यक है। ध्यान रहे- कोलेस्ट्रॉल को कन्ट्रोल में रखने के लिये चर्बी वाले खाद्य पदार्थों यथा- माँस, अण्डे, घी, मक्खन के बजाय हरी सब्जियों, फलों व रेशे वाले खाद्य पदार्थों (vitamins)का सेवन ज्यादा से ज्यादा करें। इसके अलावा धूम्रपान के साथ-साथ शराब व मानसिक तनावों से छुटकारा पाकर आप अपने हृदय को लम्बे समय तक स्वच्छ रख सकते हैं।

7. स्पन्दन (Palpitation) 

  इसमें रोगी हृदय की धड़कन (Palpitation) को अनुभव करता है। यह बहुत ज्यादा वर्जिश एवं घबराहट के कारण होता है। ज्यादा चिंता, खून की कमी व थाइरोटोक्सीकोसिस अन्य सहायक कारण हैं।

8 मूर्च्छा (Syncope) 

 इसमें रोगी अचानक बेहोश होकर गिर जाता है। ऐसा मस्तिष्क में रक्त प्रवाह व रक्त निवेशन दबाव के कम होने से होता है। महाधमनी व फुफ्फुसीय संकीर्णता.हृदय अतालता से मूर्च्छा आ सकती है। 

9.थकावट व कमजोरी

यह लक्षण किसी भी रोग में हो सकते हैं, पर हृदय रोग में कार्डियक आउटपुट के कम होने से मिलते हैं। हृदय सम्बन्धी दवाइयों की वजह भी अधिक पेशाब आने पर कमजोरी व थकावट महसूस होती है। 

10. ऊर्ध्वस्थ श्वसन (Orthopnoea) 

 इस लक्षण में रोगी को सीधा लेटकर साँस लेने में दिक्कत होती है। इन रोगियों में प्रायः श्वास-कष्ट (Dyspnoea) की शिकायत पहले से रहती है। रोगी रात में अचानक उठकर लम्बी-लम्बी साँस लेने लगता है।

11. प्रवेगी रात्रि श्वास कष्ट (Paroxysmal Noeturnal Dyspnoea) 

यह तकलीफ बायें हृदय के काम न करने पर होती है। इसमें रोगी को सोने से पहले ही साँस लेने में दिक्कत आती है। सोने के बाद फेफड़ों में पल्मोनरी बेनस दबाव और बढ़ जाता है। रोगी को अचानक उठकर लम्बी-लम्बी साँस लेनी पड़ती हैं एवं बेचैनी महसूस होती है। वह खिड़की के पास जाकर लम्बी सांस लेता है इसके बाद रोगी को खांसी आने के साथ  पलमोनरीऑडिमा हो जाता है

12. फुफ्फुसीय शोथ (Palmonary Oedema)

 यह वायुकोष्ठिका में द्रव के एकत्र होने से होता है। हृदय रोग में अधिक पल्मोनरी व केपीलरी दबाव से फेफड़ों में द्रव एकत्र हो जाता है।

रोगी को साँस लेने में बहुत ज्यादा तकलीफ होती है व साथ में खाँसी होकर झाग भरा बलगम निकलना प्रारम्भ हो जाता है। कभी-कभी बलगम के साथ खून भी आ जाता है। रोगी की त्वचा ठंडी, नीली व नम होती है। जीभ व नाखून नीले हो जाते हैं। फेफड़ों में कर-कर (Crepts) व सीटी की सी आवाज सुनाई देती है।

यह लक्षण निम्नलिखित स्थितियों में मिलता है 

  • बहुत ज्यादा ब्लड प्रेशर होने पर।
  • एक्यूट मायोकार्डियल इन्फार्कशन (Acute M. I.) 
  • माइट्रल स्टेनोसिस (Mitral Stenosis) 
  • गर्भावस्था (Pregnancy)
  • हृदय अतालता (Cardiac Arrhythmias)
  • श्वसन तंत्र के रोग (Respiratory diseases)


हृदय रोग में मिलने वाले चिन्ह

  • नील रोग (Cyanosis)
  • सूजन (Oedema)
  • हाथ व पैरों की अँगुलियों के आगे वाले हिस्से मोटे हो जाते हैं (Clubbing of Fingers)
  • पीलिया (Icterus)
  • ब्लड प्रेशर सामान्य से कम या ज्यादा होता है।
  • जुगलर वेसन प्रेशर (J.V.P.)-कार्डियक फेल्योर में बढ़ जाता है।


परीक्षण / जाँच (Investigation) -


  •  एक्स-रे चेस्ट (X-Ray Chest) 
  • ई. सी. जी. (Electrocardiography)
  • इकोकार्डियोग्राफी (Echocardiography)
  • फोनोकार्डियोग्राफी(Phonocardiography)
  •  एन्जियोकार्डियोग्राफी (Angiocardiography)
  • कोरोनरी एन्जीयोग्राफी (Coronary Angiography)
  •  रेडियोन्युक्लाइड स्कैनिंग (Radionuclide Scanning)
  • किसी भी बीमारी को समझने के लिए या किसी भी दवा को यूज करने से पहले अपने डॉक्टर की सलाह आवश्यक ले अगर ऐसा नहीं करती हैं तो इसके जिम्मेदार खुद आप हैं