Wednesday, September 3

GOUT-गाउटी अर्थाइटिस (गठिया)


नाम पर्याय :-वात रक्त, गठिया


परिचय रक्त में यूरिक अम्ल के अत्यधिक हो जाने एवं Tissues तथा जोड़ी में सोडियम यूरेट के जमा होने के कारण जोड़ों में विशेषकर पैर के अंगूठे की प्रपद-अंगुलारिख सन्धि के सूजन हो जाना जिसमें बहुत तेज दर्द होता है जो अधिकतर रात में शुरू होता है और यह रोग अधिकांशत: पुराने शराबियों में होता है।
एक metabolic रोग जो रक्त में अत्यधिक यूरिक अम्ल के साथ संलग्न होता है, पीड़ादायक प्रदाह एवं छोटे जोड़ों की सूजन विशेषतः हाथ-पाँव के अंगूठों की इससे विशिष्ट लक्षण है। जोड़ों के आस-पास यूरेट्स के निक्षेप के साथ inflammation होता है।
गठिया रोग के प्रमुख कारण

👉प्राइमरी गाउट प्राय: आनुशिक विकार है। 50-80% रोगियों में इसके होने का परिवारिक इतिहास मिलता है।

👉40 वर्ष की अवस्था से पूर्व बहुत कम।

👉भोजन में प्यूरीन (Purin) की अधिक मात्रा लेने पर विशेषकर स्त्रियों में।

👉द्वितीयक गाउट प्रायः रक्तगत रोगों विशेषकर हीमेटोजिकल विकार के उपद्रव रूप में । (यथा-पोलीसिरथेमिया, ल्यूकेमिया) आदि।

👉फ्ररोमाइड (मूत्रल औषधि) एवं थाइडीजिन (Thiadizine) आदि औषधियों के सेवन से। सेवन से।

👉पूर्ववर्ती कारण-अधिक मात्रा में अपथ्य भोजन से-विशेषकर मद्य (शराब) के प्रयोग से। कभी-कभी आघात (Injury) या मेहनत पश्चात् किसी इंफेक्शन के कारण अथवा ऑपरेशन के उपरान्त हो सकता है। 


प्रमुख लक्षण

  • रोग का प्रारम्भ तीव्र (Acute) रूप में होता है। साधारणतः रात्रि के समय में।
  • पैर के अंगूठे का जोड़ बहुत आसानी से प्रभावित। कूल्हे तथा कंधे के जोड़ बहुत कम प्रभावित ।
  • एक दौरे में एक से अधिक जोड़ प्रभावित हो सकते हैं।
  • जैसे-जैसे रोग का दौरा बढ़ता है दर्द उतना ही तीव्र ।
  • प्रभावित जोड़ सूज जाता है और रोगी उस पर हाथ भी नहीं लगाने देता है। प्रभावित जोड़ की त्वचा गर्म एवं धूमिल लाल हो जाती है।
  • प्रायः ज्वर (Fever) सामान्य ही रहता है। कान के ऊपरी भाग में, हाथों एवं पैरों में टॉफाई (Tophi) पाई जा सकती है। साधारणतः महीनों या सालों तक रोग का कोई लक्षण नहीं। इसके बाद रोग तीव्र रूप से प्रकट होता है।

अन्य लक्षण

  1. रोगी के पसीने में खटास जैसी गन्ध ।
  2. स्वभाव एकदम चिड़चिड़ा ।
  3. पेशाब पहले थोड़ी-थोड़ी मात्रा में और पीले रंग का पानी की तरह साफ। परन्तु बाद में अधिक मात्रा में आने लगता है।
  4. जमीन पर पेशाब सूख जाने पर वहाँ ऐसी तलपट जम जाती है मानो लाल ईंट पीस कर डाल दी गई हो।
  5. रोग वर्षों तक चालू रहता है।

गठिया का प्रथम आक्रमण प्रायः रात्रि के समय होता है. रोगी को पहले से कोई आभास नहीं, अचानक हाथ पैर के अंगूठे में उठने वाली असहयनीय पीड़ा से उसकी आँख खुल जाती है और सवेरा होते-होते पीड़ा कम हो जाती है।  

रोग की पहचान

  • रोग का निदान पुरुषों में 30 से 50 वर्ष के मध्य बार-बार सन्धि शोथ के आक्रमण के इतिहास में ।
  • परिवारिक इतिहास भी रोग निदान में सहायक ।
  • रेडियोलॉजिकल परीक्षण प्रायः निगेटिव । बाद की अवस्था में उच्च प्लाज्मा, यूरिक एसिड और टिपिकल रेडियोलोजिकल फिंडिंग मिलकर रोग का सही निदान कर लेते हैं।

रोग का परिणाम

  • रोग की अन्तिम अवस्था में रीनल फेल्योर की वृद्धि के लक्षण हो जाते हैं।
  • रोगी कोरोनरी थ्रोम्बोसिस से मर जाता है ।

चिकित्सा विधि

  •  सबसे पहले आर्द्राइटिस की चिकित्सा करें तत्पश्चात् यूरीमिया की ।
  • स्टेरॉइडविहीन शोथ नाशक औषधियाँ (Anti inflammatry drugs) सहायक सिद्ध होती हैं
  • तीव्र पीड़ा की स्थिति में एनाल्जेसिक न कि एस्प्रिन ।
  • तीव्र एवं बार-बार होने वाले गठिया में यूरिक एसिड उत्सर्ग करने वाली औषधियाँ दें। 
  • जिनका वजन अधिक है उन्हें अपना मोटापा घटाना प्रशस्त ।


पथ्यापथ्य उपचार व्यवस्था
  • प्रतिदिन पर्याप्त मात्रा में जल पीने को प्रतिदिन काफी मात्रा में । सवेरे उठते ही (1 गिलास) गर्म पानी में मैगसल्फ 1-2 ग्राम तक मिलाकर पीना चाहिए। अथवा 1 गिलास पानी में 'ईनोज फ्रूट साल्ट' या क्रुश्चन साल्ट मिलाकर कई महीने तक पीते रहें ।
  • गठिया की चिकित्सा से खुराक (Diet) का परहेज अधिक दिनों तक नहीं चलाया जा सकता। किन्तु मोटापा में अवश्य चलता है। स्वीट, ब्रीडस, लिवर, किडनी, ब्रेन, हार्ट, छोटी चर्बी वाली मछली, माँस आदि से परहेज रखें।

नोट- अधिक प्रोटीनयुक्त भोजन न दें। बाहर टहलना एवं अन्य व्यायाम लाभदायक हैं। 

गठिया जोड़ों की बीमारी है जोड़ों को चिकना बनाये रखने का काम साइनोवियल फ्लूड करता है। यदि किसी कारणवश जोड़ों के बीच की चिकनाई खत्म हो जाती है अथवा खत्म होने लगती है तो इस स्थिति में जोड़ों की गति बाधित होने लगती है।

गठिया की औषधि चिकित्सा-
  • यदि पैर की सन्धि प्रभावित हो तो पूर्ण आराम दें।
  • क्षारीय मिश्रण (Alkaline Mixture) दें।
  • फेनिल ब्यूटाजोन (Phenyl butazone) पहले दिन 8 टिकिया, फिर 6, तत्पश्चात् 4 और अन्त में 2 टिकिया प्रतिदिन दें।
  • कोल्चिसीन (Colchicine) 1 मि. ग्रा. पहली मात्रा, फिर 1/2 मि. ग्रा. प्रति 2 घंटे पर 8-10 मात्रा तक दें। फिर प्रतिदिन 1/2 मि. ग्रा. 7 दिन तक दें।

गठिया की चिकित्सा इस प्रकार से भी
कोल्चिसीन (Colchicine) 0.6 मि. ग्रा. मुख से हर घंटे पर। अथवा इंडोमेथासिन (Indomethacin) 75 मि. ग्रा. मुख द्वारा तत्पश्चात् 50 मि. ग्रा. मुख द्वारा
प्रति 6 घंटे पर दें।
• बचाव हेतु-कोल्चिसीन 1-2 मि. ग्रा. प्रतिदिन अथवा इंडोमेथासिन 25 मि.ग्रा. मुख द्वारा दिन में दो या 3 बार ।

आजकल गठिया सन्धि शोथ की चिकित्सा निम्न प्रकार से करते हैं
तुरन्त आक्रमण होने पर रोगी को निम्न दवाईयाँ दें-
  • कै. आईडीसिन (Idicin) 25 मि. ग्रा. 'आईडीपीएल' मात्रा-1 कैप्सूल हर 6 घंटे बाद दिन में 3 बार ।
  •  के. इण्डोकैप (इण्डोमेथासिन) 'जगसनपाल' मात्रा- हर 6 घंटे बाद 1 कै.
  •  टेब. वोवीरान (Voveran) 50 मि.  ग्रा. 'नोवार्टिश' मात्रा- 1 गोली दिन में 3 बार।
  •  टेब. डोक्लोमेक्स (Doclomax 50 mg) 'टोरेण्ट' 1 गोली दिन में 3 बार ।
  • कोल्चिसीन (Colchicine)- यह गाउट से उत्पन्न सूजन को कम करती है इसको अटैक होने पर तुरन्त देना चाहिये। मात्रा- शुरू में 1 मिग्रा. दें। तत्पश्चात् 0.25 मि. ग्रा. हर तीन घंटे में दिन में 3-4 बार तब तक देते रहें जब तक आक्रमण समाप्त न हो जायें या रोगी को दस्त शुरू न हो जायें।
  • व्यापारिक नाम-
  • टेब. गाउटनिल (Goutnil 0.5 mg) 'इंगा' ।
  • टेब. कोल्चिसीन्डोन (Colchicindon) 'इण्डोन 0.5mg. टेबलेट ।जीर्ण रोगियों में जिनके यूरिक एसिड रक्त में लगातार ज्यादा बना रहता हो उन्हें निम्न दो प्रकार की दवायें दे सकते हैं-
  • (1) एलोप्युरिनोल (Allopurinol)— यह औषधि यूरिक एसिड को बनने से रोकती है। मात्रा- शुरू में 100-200 मि.ग्रा. प्रतिदिन बाद में 200-600 मि. ग्रा. प्रतिदिन ।
  •  व्यापारिक नाम-
  • टेब. एलगोरिक (Allgoric) 100 मि. ग्रा. 'केमरान'
  •  टेब. जायलोरिक (Zyloric) 100 मि. ग्रा. 'बेलकम'
  • नोट- जीर्ण मरीजों में यह दवाई बहुत ही कारगर रहती है। इस दवाई का विषाक्त प्रभाव भी बहुत कम है।
  • (2) प्रोबेनामिड (Probenamid)— यह औषधि पेशाब के माध्यम से यूरिक एसिड को निकालती है। मात्रा- 0.25 मि. ग्रा. दिने में 2 बार ।
  • व्यापारिक नाम-
  •  टेब. वेनसिड (Bencid 500 mg.) 'जेनो' । वयस्क : 250 mg की एक गोली दिन में 2 बार एक सप्ताह तक 
• गठिया की विस्तृत चिकित्सा एक दृष्टि में●
  1. पहले अर्थाइटिस की चिकित्सा । तत्पश्चात् यूरीमिया की ।
  2.  एण्टी-इन्फ्लेमेटरी ड्रग्स की उचित व्यवस्था ।
  3. तीव्र गठिया में कोल्चिसिन प्रभावकारी। कुल मात्रा 4-5 मि.ग्रा. ।
  4. यदि एक ही जोड़ में गठिया हो तो-डाइमिसीनोल 10-40 मि. ग्रा. का सन्धिगत इंजेक्शन देने से सर्वाधिक लाभ ।
  5. गठिया से कई जोड़ प्रभावित होने पर कोर्टिकोस्टेरॉइड। य! -मिथाइल प्रेडनीसोलोन 40 मि. ग्रा. । धीर-धीरे कम करते हुए 7 दिन तक द । मुख द्वारा 40-60 मि. ग्रा. कम करते हुए 7 दिन तक ।
  6. तीव्र पीड़ा की स्थिति में एनाल्जेसिक जैसे-जोनेक (Zonac)। (एस्प्रिन नहीं)। 
  7. तीव्र एवं बार-बार होने वाले गठिया में-प्रोबेनैसिड 0.5 मि. ग्रा. प्रतिदिन दें। नोट-इसको धीरे-धीरे बढ़ाते हुए 1-2 ग्राम प्रतिदिन तक ले जाएँ।

फेनिलबूटाजोन (जोलेन्डीन) 100 मि. ग्रा. की 2-2 टिकिया दिन में 3 बार दें। इसके बाद 2-3 दिन में 3 बार दें। इसके बाद 2-3 दिन तक 1-1 टिकिया दिन में 3 बार दें। पानी अधिक पिलावें ।
स्थानीय उपचार में-प्रभावित संधियों पर 'गुलार्ड लोशन' मलकर ऊनी वस्त्र की पट्टी बाँध दें। गर्म पानी के सेंक से भी लाभ मिलता है।
जीर्ण गठिया रोग में (In Chronic Gout)
  • बेनेमिड (Benemid) प्रोबेनेसिड का व्यापारिक नाम। 0.5 मि. ग्रा. टिकिया (1/2-1/2 टिकिया दिन में 2 बार) 1 गिलास पानी से 2 सप्ताह तक दें। इसके बाद 1 टिकिया दिन में 2-3 बार अगले 4 सप्ताह तक दें। साथ ही 0.6 ग्राम सोड़ा बाईकार्ब पानी के साथ दिन में 3 बार दें।
  • औषधि सेवन के दौरान गठिया का पुनराक्रमण होने पर प्रोबेनेसिड के साथ-साथ कोल्चिसिन 0.5 मि. ग्रा. दिन में 2 बार दें।
प्रोबेनेसिड के सेवन के दौरान सेलिसिलेट्स अथवा पेनिसिलिन का सेवन न करें।


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